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अनपत्ययोग- कारण और निवारण 

ज्योतिष शास्त्र में अनपत्ययोग
अनपत्य शब्द का शाब्दिक अर्थ निःसंतानता है| किन्तु ज्योतिष शास्त्र में यह संतान सुख के अभाव के अर्थ में अभिगृहीत है| यह सुखाभाव संतान के उत्पन्न न होने उनके रोगी रहने संतान के अवज्ञाकारी होने, कुल नाशक होने या माता-पिता के जीवन कल में ही काल कवलित होने के अर्थ विस्तार को प्रकट करता है| राहू, सूर्य, चन्द्र, भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि को ज्योतिष शास्त्र के आदि प्रवर्तक ने क्रमशः सर्प, पिता, माता, मामा, विप्र, स्त्री, प्रेत का कारक माना है यह जब पंचमेश हो, पंचम से सम्बन्ध बना, दुर्बल या अस्त होते हैं| तो क्रमशः इन्हीं के श्राप से सर्पशापादी का जन्म होता है| ये ग्रह यदि संतान प्राप्ति में बाधक हो तो पुर्वक्रमानुसार क्रमशः, कन्यादान, हरिवंशपूराण सुनने, निर्वाचन करने, रुद्राभिषेक कराने, कांस्यपात्र का सविधि दान करने, गया श्राद्ध करने, गो सेवा करने, मृत्युंजय का जाप करने, व केतु के अरिष्ट को दूर करने हेतु कपिला गौ का दान करना चाहिए|

(१) सर्पशापात्सुतक्षयोगः-
१. पंचम भाव में राहू, भौम से दृष्ट या राहू मंगल की राशि (१,८)में हो या पंचमेश- राहू से युक्त हो और पंचम में शनि- चन्द्र से युक्त या दृष्ट हो| 
२. संतान कारक गुरु राहू से युक्त हो, पंचमेश बलहीन हो, लग्नेश भौम से युक्त हो,- सर्पशाप से संतान नष्ट होता है| 
३. सन्तान कारक गुरु भौम से युक्त हो, लग्न में राहू हो और पंचमेश ६,८,१२ में हो तो - सर्प संतान नष्ट होता है|
४. भौम में अंश से युक्त, पंचमेश बुध, और लग्न में राहू तो मांदि (गुलिक) हो तो|
५. पंचम भाव में मंगल की राशि (१,८) हो, और पंव्हम भाव में राहू भी हो तो|
६. पञ्चम भाव में सु, श, मं, रा, बु, गु, हो और पंचमेश लग्नेश हो तो|
७. लग्नेश राहू से युक्त हो, पंचमेश मंगल युक्त हो, कारक गुरु राहू से युक्त हो तो अन्पत्यता होती है|
  •   शंतिविधान- 
१. ग्रह योग वश शाप को जानकर उस दोष शान्त्यर्थ अपने वेदोक्त गृह्य सूक्त की अनुसार विधानपूर्वक सुवर्ण की नाग मूर्ति बनाकर उसकी प्रतिष्ठा करें और उसका यथोक्त रीति से पूजन करें|
२. गौ, भूमि, तिल सुवर्णादि का दान अपनी शक्ति के अनुसार करने से नाग देव प्रशन्न होकर कुल की वृद्धि करते हैं| 
(२) पित्रिशापत्सुतक्षययोगः-
१. पंचम स्थान में सूर्य, अपने नीच राशि में शनि के अंश में हो और उसके आगे तथा पीछे पाप ग्रह हो तो पितृशाप के कारण सन्तान नष्ट होता है| 
२. पंचामस्थ सूर्य, क्रूर ग्रहों के मध्य से, त्रिकोण में हो, और पाप ग्रह से देखा जाता हो|
३. सूर्य की राशि में गुरु हो और पंचमेश सूर्य से युत हो तथा पंचम और लग्न में पाप ग्रह हो|
४. लग्नेश दुर्बल होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश सूर्य से युत हो तथा पंचम और लग्न में पाप ग्रह हो|
५. दशमेश पंचम भाव में हो और पंचमेश दशम भाव में हो, तथा लग्न और पांचवें भाग में पाप ग्रह हो|
६. दशमेश मंगल (लग्न-४,११) पंचमेश से युत हो और लग्न, पंचम, दशम भाव में हो|
७. दशमेश ६, ८, १२ भाव में हो, तथा कारक गुरु पाप ग्रह की राशि में हो तथा पंचमेश तथा लग्नेश पाप युक्त हो तो|
८. लग्न और पंचम भाव में सू, मं, श हो और ८, १२ स्थान में रा, तथा गुरु हो और लग्न में पाप ग्रह हो तो|
९. पितृ भाव से १२ वें अर्थात लग्न से ८ वें भाव में, सूर्य हो/ और पंचम भाव में शनि और मंगल हो तो/ पंचमेश राहू से युत लग्न में पाप ग्रह होगा|
१०. व्ययेश लग्न में हो और अष्टमेश पांचवें भाव में हो, तथा दशम अष्टम भाव में हो|
११. षष्टेश पंचम भाव में, दशमेश के साथ हो और कारक गुरु-राहू के साथ हो| 
  • शांतिविधान- 
   गया श्राद्ध करें और एक हजार या १० हजार ब्राह्मणों को भोजन करवावें, इसके बाद कन्यादान और सवत्सा गौ का दान करें, इतना करने से वह शाप मुक्त हो जाता है|
(३) मातृशापात्सूतक्षययोगः
१. पञ्चमेशचन्द्र (मीन लग्न) अपने नीच राशि मे हो (नवम् भाव) या पाप ग्रह हो और ४,५ वें भाव पाप ग्रह हो| 
२. एकादश भाव में शनि हो (कर्क लग्न) और चौथे भाव में पाप ग्रह हो और नीच का चन्द्रमा पंचम भाव में हो|
३. पंचमेश चन्द्र (मीन लग्न) श, रा, भौ, से युत हो, कारक गुरु पंचम भाव में हो|
४. पंचमेश ६, ८, १२ में हो, लग्न व पंचम में पाप ग्रह हो|
५. चतुर्थेश भौ, श, रा, से युत हो, पंचम भाव और लग्न सूर्य, चन्द्र से युत हो|
६. लग्नेश, पंचमेश छठे भाव में, अष्टम भाव में चतुर्थेश, दशमेश-अष्टमेश-लग्न में हो|
७. षष्ठेश, अष्टमेश के स्वामी लग्न में, सुखेश द्वादश भाव में हो, चन्द्रमा गुरु- पाप ग्रह से युक्त हो|
८. लग्न पाप ग्रहों के मध्य हो, क्षीणचन्द्र ७ वें में हो, ४, ५, भाव में रा श हो तो|
९. अष्टमेश पंचम भाव में हो, पंचमेश आठवें भाव में हो और चन्द्रमा तथा सुखेश ६, ८, १२ में हो तो|
१०. अष्ट भाव में मं, शु, से युत गु हो, और पांचवें भाव में शनि- चन्द्र हो|
  •    शांतिविधान-
शुभ योग शुभ फल तथा मिश्र योग से मिश्रित फल गायत्री का जप कराके, सेतु स्नान करें, ग्रह दान और चाँदी के पात्र में दूध का दान करें|
   ब्राह्मणों को भक्ति भाव से भोजन करावे और २८ हजार पीपल की प्रदक्षिणा करें|
(४) भ्रातृशापात्सुक्षययोगः-
१. तृतियेश मंगल राहु से युक्त होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश- लग्नेश आठवें भाव में हो|
२. लग्न पंचम भाव में भौम-शनि हो, तृतीयेश नवम भाव में हो तथा भातृकारक (मंगल) हो|
३. तृतीय भाव में नीच राशि का गुरु हो, और शनि पंचम भाव में हो, चन्द्र शनि आठवें भाव में हो (वृश्चिक लग्न)|
४. लग्नेश, द्वादश भाव में, पंचम भाव में मंगल हो, पंचमेश अष्टम भाव में हो|
५. पाप ग्रह के मध्य में लग्न हो, और पंचम भाव भी पाप ग्रह के मध्य हो, लग्नेश पंचमेश ६, ८, १२ हो|
६. कर्मेश पापग्रह से युत होकर तृतीय स्थान में हो और पंचम भाव में मंगल हो|
७. पंचम भाव में बुध की राशि (३,६) हो और उसमे शनि-राहू युत हो तथा १२ वें भाव में बुध-भौम हो|
८. लग्नेश तृतीय भाव में, त्रितेयेश पंचम भाव में तथा तृतीय व पंचम भाव में पाप ग्रह हो|
९. तृतीयेश, अष्टम भाव में और पांचवें में कारक राहू माँदी (गुलिक)से युत या दृष्ट हो|   १०. अष्टमेश, पंचम भाव में तृतीयेश से युत हो, आठवें भाव में मंगल-शनि हो|
  •     शान्तिविधान-
१. विष्णु का कीर्तन सुनना चाहिए|
२. चान्द्रायण व्रत करें|
३. इसके उपरांत कावेरी नदी के किनारे विष्णु के सन्निकट, पीपल के वृक्ष की स्थापना करें|
४. १० गौ का दान करें|
५. इसके बाद प्राजापत्य करके भूमि का दान करने से -पुत्र की वृद्धि होती है|
   (५) मातुलात्सुत  क्षययोगः-
१. पंचम भाव में बु.गु.मं.रा हो और लग्न में शनि हो|
२. लग्नेश और पंचमेश श,मं और बुध के साथ एकत्र हो|
३. लग्नेश अस्त होकर लग्न में तो और सातवें भाव में शनि हो और लग्नेश बुध के साथ हो|
४. द्वादशेश- सुखेश से युक्त होकर लग्न में हो- च, बु, भौम पंचमस्थ हो तो|
  •        शान्तिविधान-
१. विष्णु प्रतिमा स्थापना करें|
२. बावली, कुआँ, तालाब बनायें|
३. पुल का निर्माण करावें तो पुत्र व संपत्ति की वृद्धि|
    (६) ब्राह्मणशापात सुतक्षययोगः 
१. गुरु की राशि, पंचम भाव में हो और नवमेश आठवें भाव में हो|
२. पंचम भाव में गुरु, मंगल, शनि हो, और गुरु की राशि में (९,१२)में राहू हो, और नवमेश अष्टम भाव में हो|
३. धर्मेश पंचम भाव में, और पंचमेश धर्म भाव में हो, तथा गु,भौ,रा आठवें भाव में हो|
४. नवमेश नीच राशि में हो और व्ययेश राहु के साथ पंचम भाव में हो|
५. गुरु नीच राशि में हो, राहू लग्न और पंचम भाव में हो, पंचम ६, ८, १२ वें भाव में हो|
६. पंचमेश गुरु (५,८ लग्न), आठवें भाग में, पाप ग्रह से युक्त हो या पंचमेश सर्व या चन्द्र हो|
७. शनि के अंश में, श, मं, गुरु से युक्त हो, व्यय भाव में गुरु हो|
  •    शान्तिविधान-
८. चन्द्रायण ब्रह्मकूर्चव्रत करके दक्षिणा के सहित गोदान|
९. और पंचरत्न सोने के साथ दान करके दश हजार या एक हजार ब्राह्मणों को अन्नदान करें|
(७) पत्नीशापात्सुतक्षययोगः-
१. सप्तमेश पंचम भाव में हो तथा सप्तमेश के नवमांश का, पंचमेश, आठवें भाव में हो|
२. सप्तमेश आठवें भाव में और व्ययेश पांचवें भाव में हो, कारक (शुक्र) पाप युक्त युक्त हो|
३. पंचम स्थान में शुक्र हो सप्तमेश आठवें भाव में हो तथा कारक (शुक्र)पाप युक्त|
४. दुसरे भाव में पाप ग्रह हो, सप्तमेश आठवें भाव में हो और पांचवें भाव में पाप ग्रह हो|
५. नवम भाव में शुक्र, पंचमेश आठवें भाव तथा लग्न और पांचवें में पाप ग्रह हो|
६. भाग्ये शुक्र हो, पंचमेश ६ ठे भाव में हो, गु, लग्नेश, सप्तमेश ६,८,१२ भाव में हो|
७. पंचम भाव में शुक्र की राशि (२,७), राहू चन्द्र से युक्त हो १२,१,२, भावों में पाप ग्रह हो|
८. ४वें भाव में शनी, शुक्र हो, अष्टमेश पंचम भाव में, रवी-राहू लग्न में हो|
९. दुसरे भाव में भौम, बारहवें भाव में गुरु, पांचवें भाव में शुक्र दाहयुक्त, या दृष्ट हो|
१०. ८ वें भाव में धनेश, सप्तमेश हो, पांचवें भाव में और लग्न में शनि- भौम हो, तथा कारक पाप युक्त हो| 
११. लग्न, पंचम, नवम में रा,श,भौ हो और आठवें भाव में- पंचामेश सप्तमेश हो|
  •     शान्तिविधान-
कन्यादान करें, लक्ष्मी नारायण की मूर्ति सभी आभणो से युक्त दान कर १० गौ का दान करें| शय्या- आभूषण, सपत्नी ब्राह्मण को दें|
(८) प्रेतशापात्सुतक्षय योगः
१. जब पितरों के कर्म का लोप होता है अर्थात उनके श्राद्धादि ठीक से नहीं होते हैं तो वे पिशाच हो जाते हैं तथा वे वंश वृद्धि नहीं होने देते|
२. पंचम भाव में सूश हो और सातवें भाव में क्षीणचन्द्र हो तथा लग्न और १२ वें भाव में राहू तथा गुरु हो 
३. पंचमेश शनि आठवें भाव में हो लग्न में भौम और कारक आठवें भाव में हो|
४. लग्न में पाप ग्रह हो तथा १२ वें भाव में सूर्य हो और पांचवें भाव में भौम, शनि, बुध हो और पंचमेश आठवें भाव में हो|
५. लग्न में राहू पांचवें भाव में शनि संतान कारक ८ वें भाव में हो|
६. लग्न में राहू, सुक्र, गुरु, हो चन्द्रशनि से युत हो, लग्नेश आठवें में हो|
७. लग्न में रा तथा पंचम भाव में शनि हो भौम से युत या दृष्ट हो|
८. संतान कारक नीच राशि में हो, पंचमेश अपने नीच राशि में हो तथा नीच राशिस्थ ग्रह से युत वा दृष्ट हो|
९. लग्न में शनि, पांचवें भाव में राहू, आठवें भाव में सूर्य हो, और १२ वें भाव में भौम हो|
१०. सप्तमेश ६,८,१२ भाव में भौम युक्त हो, पंचम भाव में चन्द्र हो, लग्न में शनि और गुलकि हो|
११. अष्टमेश शनि शुक्र से युक्त होकर पंचम भाव में हो और कारक आठवें भाव में हो तो प्रेतशाप से संतान अनपत्यता होती है|
  •    शान्तिविधान-
१. गया में श्राद्ध करना चाहिए|
२. रुद्राभिषेक करके ब्रह्म की मूर्ति का दान|
३. धेनु तथा चाँदी के पात्र और नीलमणि का दान करना चाहिए|
  उपरोक्त योग "बृहत्पाराशर होरा शास्त्र" के आधार पर वर्णित है| विशेष ज्ञान के इस ग्रन्थ पूर्वजन्मशाप द्योतकाध्याय के १४१ श्लोको का अवलोकन करना चाहिए|     

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