हरि अनंत हरि कथा अनंता
अनंत चतुर्दशी के दिन चौदह गांठों वाले अनंत को पूजनोपरांत धारण किया जाता है| इस सूत्र से हमें आत्मबल मिलने के साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी मिलता है|
भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है| श्रीहरि विष्णु के सहस्त्र नामों में से एक नाम है अनंत| असल में वह क्षीर सागर में सदैव योगमुद्रा में अनंत शयन में रहकर जगत की गतिविधियों को देखते हैं| दूसरा कारण यह है कि सृष्टि की रचना के समय सम्पूर्ण संसार जलमग्न था| ऐसे में भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को संसार की रचना के लिए अपनी नाभि कमल से उत्पन्न किया था| ब्रह्मा जी सोच में पड़ गए कि इस जलमग्न संसार में मैं सृष्टि की रचना कैसे करुंगा, तब ब्रह्मा जी की मनोदशा समझते हुए विष्णु जी ने तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव:, स्वः, जन, तप, सत्य, मह, इन १४ लोकों की रचना की|
इन चौदह लोकों के पालन के लिए स्वयं भी १४ लोकों में वास करने लगे| इससे भगवान विष्णु अनंत प्रतीत होने लगे और इनका नाम अनंत पड़ा| तुलसीदास जी ने रामायण में भगवान की स्तुति करते हुए कहा है 'हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सनहिं बहू विधि सब संता'| गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि वह अनादि और अनंत हैं| इन्होंने ही द्दुत क्रीड़ा में सबकुछ हार जाने के बाद पांडवों को सबकुछ पाने के लिए अनंत भगवान की पूजा करने की सलाह दि थी| इनकी पूजा से ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी हुए और उन्हें खोया राज्य वापस मिला|
भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है| श्रीहरि विष्णु के सहस्त्र नामों में से एक नाम है अनंत| असल में वह क्षीर सागर में सदैव योगमुद्रा में अनंत शयन में रहकर जगत की गतिविधियों को देखते हैं| दूसरा कारण यह है कि सृष्टि की रचना के समय सम्पूर्ण संसार जलमग्न था| ऐसे में भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को संसार की रचना के लिए अपनी नाभि कमल से उत्पन्न किया था| ब्रह्मा जी सोच में पड़ गए कि इस जलमग्न संसार में मैं सृष्टि की रचना कैसे करुंगा, तब ब्रह्मा जी की मनोदशा समझते हुए विष्णु जी ने तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव:, स्वः, जन, तप, सत्य, मह, इन १४ लोकों की रचना की|
इन चौदह लोकों के पालन के लिए स्वयं भी १४ लोकों में वास करने लगे| इससे भगवान विष्णु अनंत प्रतीत होने लगे और इनका नाम अनंत पड़ा| तुलसीदास जी ने रामायण में भगवान की स्तुति करते हुए कहा है 'हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सनहिं बहू विधि सब संता'| गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि वह अनादि और अनंत हैं| इन्होंने ही द्दुत क्रीड़ा में सबकुछ हार जाने के बाद पांडवों को सबकुछ पाने के लिए अनंत भगवान की पूजा करने की सलाह दि थी| इनकी पूजा से ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी हुए और उन्हें खोया राज्य वापस मिला|
अनंत की चौदह गांठें-
अनंत भगवान ने सागर मथकर चौदह लोकों की रचना की थी, इसलिए अनंत पूजा के दिन एक पात्र में दूध, शहद, दही, घी और गंगाजल मिलाकर क्षीर सागर का निर्माण किया जाता है| फिर कच्चे धागों से बने चौदह गांठों वाले अनंत से भगवान अनंत को क्षीर सागर में ढूंढ़ते हैं| पूजा के पश्चात इसी धागे को अनंत भगवान का स्वरुप मानकर पुरुष दाएं बाजू पर बांधते हैं और महिलाएं बाएं बाजू पर अनंत को धारण करती हैं|
अनंत की चौदह गांठों में प्रत्येक गांठ एक एक लोक का प्रतीक होता है, जिसकी रचना भगवान विष्णु ने की है| इन प्रत्येक गांठों में भगवान के उन चौदह रूपों का वास माना जाता है, जो चौदह लोकों में स्थित है| शास्त्रों के अनुसार उपनयन संस्कार के बाद ही १४ गांठों वाला अनंत किसी पुरुष को धारण करना चाहिए| महिलाओं को विवाह के बाद १४ गांठों वाला अनंत धारण करने के लिए कहा गया है| इससे पहले तेरह गांठों वाला अनंत धारण करना चाहिए| चूंकि अनंत सूत्र भगवान विष्णु का प्रतीक होता है, इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करते हैं, उन्हें मन, कर्म और वचन से वैष्णव होना चाहिए| यानि व्यक्ति को झूठ, परनिंदा एवं मांस-मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति इस नियम का पालन नहीं करते हैं, उन्हें अनंत धारण करने का पुण्य फल नहीं मिलता है| इस सूत्र को धारण करने वालों के लिए दूसरा नियम यह है कि इसे पूरे वर्ष धारण करें| फिर अनंत पूजा के दिन नया अनंत धारण करते समय पुराने अनंत को विसर्जित करें, जो व्यक्ति पूरे वर्ष धारण न करना चाहें, उन्हें १४ दिनों बाद अनंत को प्रणाम करके किसी नदी में विसर्जित कर देना चाहिए|
अनंत की चौदह गांठों में प्रत्येक गांठ एक एक लोक का प्रतीक होता है, जिसकी रचना भगवान विष्णु ने की है| इन प्रत्येक गांठों में भगवान के उन चौदह रूपों का वास माना जाता है, जो चौदह लोकों में स्थित है| शास्त्रों के अनुसार उपनयन संस्कार के बाद ही १४ गांठों वाला अनंत किसी पुरुष को धारण करना चाहिए| महिलाओं को विवाह के बाद १४ गांठों वाला अनंत धारण करने के लिए कहा गया है| इससे पहले तेरह गांठों वाला अनंत धारण करना चाहिए| चूंकि अनंत सूत्र भगवान विष्णु का प्रतीक होता है, इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करते हैं, उन्हें मन, कर्म और वचन से वैष्णव होना चाहिए| यानि व्यक्ति को झूठ, परनिंदा एवं मांस-मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति इस नियम का पालन नहीं करते हैं, उन्हें अनंत धारण करने का पुण्य फल नहीं मिलता है| इस सूत्र को धारण करने वालों के लिए दूसरा नियम यह है कि इसे पूरे वर्ष धारण करें| फिर अनंत पूजा के दिन नया अनंत धारण करते समय पुराने अनंत को विसर्जित करें, जो व्यक्ति पूरे वर्ष धारण न करना चाहें, उन्हें १४ दिनों बाद अनंत को प्रणाम करके किसी नदी में विसर्जित कर देना चाहिए|