Create your own unique website with customizable templates.
Astrology Hindi
Astrology Hindi
  • Home
    • Jyotish Shastra in Hindi
    • बारह राशियों के जप मंत्र
    • Rahu Kaal
    • Foreign Travel
    • ग्रह परिचय
    • Om Shanti Mantra for peace
    • योग विचार
    • प्रत्यन्तर्दशा साधन
    • अन्तर्दशा साधन
    • अनपत्ययोग
    • वक्री ग्रह भी देते हैं शुभ फल
    • Remedy for Saturn
    • हरि अनंत हरि कथा अनंता
    • Astrology Blog in Hindi
  • Contact
  • Match Making
    • Grah maitri & Grah Drishti
    • Manglik Dosha
    • Mantras for Relationship
    • Eye Astrology
    • कुछ कहता है कुण्डली का हर घर
    • कालसर्प दोष जानकर करें उचित उपाय
    • Remedy of Mercury
  • महादशा में अन्तर्दशा का फल
    • Effect of Antardasha in Sun Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Moon Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Mars Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Mercury Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Jupiter Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Venus Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Saturn Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Rahu Mahadasha
    • Effect of Antardasha in Ketu Mahadasha
  • Gemstones
  • Zodiacs
    • Aries (मेष)
    • Taurus (वृष)
    • Gemini (मिथुन)
    • Cancer (कर्क)
    • Leo (सिंह)
    • Virgo (कन्या)
    • Libra (तुला)
    • Scorpio (वृश्चिक)
    • Sagittarius (धनु)
    • Capricorn (मकर)
    • Aquarius (कुम्भ)
    • Pisces (मीन)

​हरि अनंत हरि कथा अनंता

Hari
अनंत चतुर्दशी के दिन चौदह गांठों वाले अनंत को पूजनोपरांत धारण किया जाता है| इस सूत्र से हमें आत्मबल मिलने के साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी मिलता है| 
भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है| श्रीहरि विष्णु के सहस्त्र नामों में से एक नाम है अनंत| असल में वह क्षीर सागर में सदैव योगमुद्रा में अनंत शयन में रहकर जगत की गतिविधियों को देखते हैं| दूसरा कारण यह है कि सृष्टि की रचना के समय सम्पूर्ण संसार जलमग्न था| ऐसे में भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को संसार की रचना के लिए अपनी नाभि कमल से उत्पन्न किया था| ब्रह्मा जी सोच में पड़ गए कि इस जलमग्न संसार में मैं सृष्टि की रचना कैसे करुंगा, तब ब्रह्मा जी की मनोदशा समझते हुए विष्णु जी ने तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव:, स्वः, जन, तप, सत्य, मह, इन १४ लोकों की रचना की|
इन चौदह लोकों के पालन के लिए स्वयं भी १४ लोकों में वास करने लगे| इससे भगवान विष्णु अनंत प्रतीत होने लगे और इनका नाम अनंत पड़ा| तुलसीदास जी ने रामायण में भगवान की स्तुति करते हुए कहा है 'हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सनहिं बहू विधि सब संता'| गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि वह अनादि और अनंत हैं| इन्होंने ही द्दुत क्रीड़ा में सबकुछ हार जाने के बाद पांडवों को सबकुछ पाने के लिए अनंत भगवान की पूजा करने की सलाह दि थी| इनकी पूजा से ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी हुए और उन्हें खोया राज्य वापस मिला|

अनंत की चौदह गांठें-

अनंत भगवान ने सागर मथकर चौदह लोकों की रचना की थी, इसलिए अनंत पूजा के दिन एक पात्र में दूध, शहद, दही, घी और गंगाजल मिलाकर क्षीर सागर का निर्माण किया जाता है| फिर कच्चे धागों से बने चौदह गांठों वाले अनंत से भगवान अनंत को क्षीर सागर में ढूंढ़ते हैं| पूजा के पश्चात इसी धागे को अनंत भगवान का स्वरुप मानकर पुरुष दाएं बाजू पर बांधते हैं और महिलाएं बाएं बाजू पर अनंत को धारण करती हैं|
अनंत की चौदह गांठों में प्रत्येक गांठ एक एक लोक का प्रतीक होता है, जिसकी रचना भगवान विष्णु ने की है| इन प्रत्येक गांठों में भगवान के उन चौदह रूपों का वास माना जाता है, जो चौदह लोकों में स्थित है| शास्त्रों के अनुसार उपनयन संस्कार के बाद ही १४ गांठों वाला अनंत किसी पुरुष को धारण करना चाहिए| महिलाओं को विवाह के बाद १४ गांठों वाला अनंत धारण करने के लिए कहा गया है| इससे पहले तेरह गांठों वाला अनंत धारण करना चाहिए| चूंकि अनंत सूत्र भगवान विष्णु का प्रतीक होता है, इसलिए जो व्यक्ति इसे धारण करते हैं, उन्हें मन, कर्म और वचन से वैष्णव होना चाहिए| यानि व्यक्ति को झूठ, परनिंदा एवं मांस-मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति इस नियम का पालन नहीं करते हैं, उन्हें अनंत धारण करने का पुण्य फल नहीं मिलता है| इस सूत्र को धारण करने वालों के लिए दूसरा नियम यह है कि इसे पूरे वर्ष धारण करें| फिर अनंत पूजा के दिन नया अनंत धारण करते समय पुराने अनंत को विसर्जित करें, जो व्यक्ति पूरे वर्ष धारण न करना चाहें, उन्हें १४ दिनों बाद अनंत को प्रणाम करके किसी नदी में विसर्जित कर देना चाहिए|
☯समस्याओं के समाधान हेतु पंडित सुनील त्रिपाठी से संपर्क करे
☯सभी रत्नों के प्रभाव व पहचान एवं रत्न धारण विधि
​☯ज्योतिष क्या है, एक परिचय
☯नव ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय
​☯हर प्रार्थना के बाद कहें ॐ शांति
☯वैवाहिक जीवन में मेलापक का प्रभाव
☯महादशा में अन्तर्दशा का फल
☯योग विचार एवं सर्वार्थसिद्धि योग​
☯प्रत्यन्तर्दशा साधन
☯अन्तर्दशा साधन
☯राहु काल
☯अनपत्ययोग- कारण और निवारण
☯विदेश यात्रा की रूकावट करें दूर
☯ग्रहों की गति-मैत्री एवं दृष्टि
☯मेलापक में मंगलिक योग एवं परिहार
☯वक्री ग्रह भी देते हैं शुभ फल
☯शनि को तेल क्यों?
☯करें मंत्र जाप, रिश्ता जमे अपने आप
​☯हरि अनंत हरि कथा अनंता
☯अनिष्ट ग्रहों की शान्ति के लिए उपयोगी रत्न
☯बारह राशियों में कौन सी है आपकी राशि
☯विश्वासपात्र होते हैं काली आँखों वाले
☯कुछ कहता है कुण्डली का हर घर
☯निर्बल बुध के लिए चमत्कारिक है पन्ना
☯
अपनी राशी के अनुसार करे मंत्र जप
☯कालसर्प दोष जानकर करें उचित उपाय

Contact Us Now...

Submit
Powered by Create your own unique website with customizable templates.

Call Us at  07704847707 to book your Astrology Consultation

Home

Contact

Payment Options

DMCA.com Protection Status
Copyright © 2018 AstrologyHindi.Com "All Rights Reserved"
Privacy Policy | Copyright Notice