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Effect of Antardasha in Moon Mahadasha

 चन्द्र महादशा में अन्तर्दशा फल 

Effect of Antardasha in Moon Mahadasha
  • चन्द्र- यदि चन्द्रमा कारक होकर उच्चांश में, उच्च राशि का, स्वराशि का, शुभ ग्रहों से युक्त और दृष्ट हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में जातक को पशुधन से, विशेषतः दूध देने वाले पशुओं से लाभान्वित करता है | इस दशा में जातक यशोभागी होकर अपनी कीर्ति को अक्षुण्ण बना लेता है, कन्या-रत्न की प्राप्ति या कन्या के विवाह जैसा उत्सव और मंगल कार्य सम्पन्न होता है | गायन-वादन आदि ललित कलाओं में जातक की रूचि बढ़ती है, स्वास्थ्य सुख, धन-धान्य की वृद्धि होती है | आप्तजनों द्वारा कल्याण होता है तथा राज्यस्तरीय सम्मान मिलता है | यदि चन्द्रमा नीच राशि का, पाप ग्रहों से युक्त अथवा ग्रहण योग में हो तथा त्रिक स्थानस्थ हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में जातक को देह में आलस्य, माता को कष्ट, चित्त में भ्रम और भय, परस्त्रिरमण से अपयश तथा प्रत्येक कार्य में विफलता जैसे कुफल देता है | जल में डूबने की आशंका रहती है, शीत ज्वर, नजला-जुकाम अथवा धतुविकार जैसी पीड़ाएँ भोगनी पड़ती है |
  • मंगल-  यदि मंगल कारक होकर उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि अथवा शुभ प्रभाव से युक्त हो तो चन्द्रमा की महादशा में अपनी दशाभुक्ति में जातक को परमोत्साही बना देता है | यदि जातक सेना या पुलिस में हो तो उसे उच्च पद मिलता है, इष्ट-मित्रों से लाभ मिलता है, कार्य-व्यवसाय की उन्नति होती है | जातक क्रूर कर्मों से विशेष ख्याति अर्जित करता है | शत्रुओं को समूल नष्ट करने में सक्षम हो जाता है | यदि अशुभ क्षेत्री अथवा नीच राशि का मंगल हो तो अपने दशाफल में अवस्था-भेद से अनेक अशुभ फल प्रदान करता है | धन-धान्य व पैतृक सम्पत्ति का नाश हो जाता है, बलात्कार के केश में कारावास होता है, क्रोधावेग बढ़ जाता है | माता-पिता व इष्ट मित्रों से वैचारिक वैमनस्य बढ़ता है, दुर्घटना के योग बनते हैं, रक्तविकार, रक्तचाप, रक्तार्श, रक्तपित्त, बिजली से झटका लगने से देह कृशता, नकसीर फूटता जैसी व्याधियों की चिकित्सा पर धन का व्यय  होता है |
  • राहु- चन्द्रमा की महादशा में राहु की अन्तर्दशा शुभ फलदायक नहीं रहती | हां, दशा के प्रारम्भ में कुछ शुभ फल अवश्य प्राप्त होते हैं | यदि राहु किसी कारक ग्रह से युक्त हो तो कार्य-सिद्धि होती है, जातक तीर्थाटन करता है तथा किसी उच्चवर्गीय व्यक्ति से उसे लाभ भी मिलता है | इस दशाकाल में जातक पश्चिम दिशा में यात्रा करने पर विशेष लाभान्वित होता है | अशुभ राहु की अन्तर्दशा में जातक की बुद्धि मलिन हो जाती है, विद्यार्थी हो तो परीछा में अनुत्तीर्ण हो जाता है और उत्तीर्ण भी हो तो तृतीय श्रेणी ही प्राप्त होती है, कार्य-व्यवसाय की हानि होती है, शत्रु पीड़ित करते हैं, परिजनों को कष्ट मिलता है | जातक अनेकाधि-व्याधियों और जीर्ण ज्वर, काला ज्वर, प्लेग, मन्दाग्नि व जिगर सम्बन्धी रोगों से घिर जाता है | इस दशाकाल में जातक को जो कष्ट न हों, वही कम हैं |
  • बृहस्पति-  यदि बृहस्पति उच्च राशि का, स्वराशि का व शुभ प्रभाव से युक्त होकर चन्द्रमा से केंद्र, त्रिकोण, द्वितीय व आय स्थानगत हो तो चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा के समय जातक के ज्ञान में वृद्धि तथा धर्माधर्म के विवेचन में उसकी बुद्धि सक्षम हो जाती है | उसके मन में उपकार करने की भावना, दानशीलता व धर्मशीलता आदि का अभ्युदय होता है | स्वाध्याय और यज्ञादि कर्म करने की प्रवृत्ति और मांगलिक कार्यों में व्यय होता है | अविवाहित जातक का विवाहोत्सव या विवाहित को पुत्रोत्सव का हर्ष, उत्तम स्वास्थ्य, नौकरी में पद-वृद्धि, किए गए प्रयत्नों में सफलता और किसी मनोभिलाषित वास्तु की प्राप्ति होती है | यदि बृहस्पति नीच राशि का, शत्रु क्षेत्री, पाप प्रभावी और त्रिकस्थ हो तो इस दशाकाल में कार्य-व्यवसाय में हानि, मानसिक व्यथा, गृह-कलह, पुत्र-कलह, कष्ट, विदेश गमन, पदच्युति और धनहानि होती है | जातक की जठराग्नि मन्द पड़ जाने से उसे वायु सम्बन्धी और यकृत रोग भी हो जाते हैं |
  • शनि-  जब चन्द्रमा की महादशा में शांति की अन्तर्दशा व्यतीत हो रही हो तथा चन्द्रमा से केन्द्र, त्रिकोण, धन या आय स्थान में स्थित शनि उच्च राशि का, स्वराशि का या पाप प्रभाव से रहित व बली हो तो जातक को गुप्त धन की प्राप्ति होती है तथा उसे कृषि कार्यों, भूमि के क्रय-विक्रय, लोहा, तेल, कोयला व पत्थर के व्यवसाय से अच्छा लाभ मिलता है | निम्न वर्ग के लोग प्रायः लाभकारी रहते हैं | यदि शनि हीं बली, नीच राशि का व पाप प्रभावी होकर ६ ठे, ८ वें अथवा १२ वें भाव में हो तो जातक अस्थिर मति हो जाता है | तर्क, प्रतियोगिता आदि में असफल, इष्टजनों से अनबन, कामवासना की प्रबलता, नीच स्त्री से प्रेमालाप के कारण उसके अपयश, वातव्याधि, अण्डकोष वृद्धि, मन्दाग्नि, गैस्ट्रिक ट्रबल, उदरशूल व गठिया आदि रोगों से पीड़ित होने की आशंका बनती है |
  • बुध- यदि चन्द्रमा की महादशा में बुध की अन्तर्दशा चल रही हो और कुण्डली में बुध पूर्ण बली,शुभ ग्रहों से युक्त और दृष्ट होकर केन्द्र, त्रिकोण आदि शुभ स्थानगत हो तो जातक निर्मल और सात्विक बुद्धि का, पठन-पाठन में रूचि रखने वाला, कार्य-व्यवसाय में धन-मन अर्जित करने वाला, आप्तजनों से सत्कार पाने वाला, विद्वत समाज में पूजित, ग्रन्थ लेखक, कन्या सन्तति का सुख पाने वाला व अनेक वाहनों का स्वामी होता है, लेकिन इच्छानुकुल फल-प्राप्ति उसे फिर भी नहीं होती, अर्थात इतने पर भी उसके मन में तृष्णा बनी रहती है | यदि बुध नीच राशि का, नीच नवांश का व अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा अशुभ भाव में स्थित हो तो अपने दशाकाल के प्रारम्भ में शत्रु से पीड़ा, पुत्र से वैमनस्य, स्त्री-सुख में कमी, पशुधन का नाश, कार्य-व्यवसाय में हानि देता है तथा अन्त में त्वचा के रोगों से देह कृशता, ज्वर तथा किसी लांछन में कारावास आदि जैसे फल प्रदान करता है |
  • केतु- चन्द्रमा की महादशा में केतु की अन्तर्दशा भी विशेष शुभ नहीं रहती, लेकिन यदि केतु शुभ छेत्री तथा शुभ ग्रहों से युक्त व दृष्ट हो तो दशा के प्रारम्भ में अशुभ और मध्य में शुभ फल प्रदान करता है | अत्यन्त मामूली धनलाभ, देहसुख, देवाराधन में रूचि तथा अन्त में धन-हानि और कष्ट होता है | अशुभ केतु के दशाकाल में जातक द्वारा किए गए प्रयत्नों में असफलता, नीच कर्मों में प्रवृत्ति, परिजनों से कलह, धर्म-विरुद्ध आचरण से अपकीर्ति, पैतृक सम्पत्ति का नाश, माता की मृत्यु, पानी में डूबने की आशंका, अण्डकोष-वृद्धि, जलोदर, यकृत व केतु का दशा काल सुखद न होकर पीड़ा युक्त ही व्यतीत होता है | 
  • शुक्र-  यदि चन्द्रमा की महादशा में शुभ एवं बली शुक्र का अन्तर व्यतीत हो रहा हो तो जातक की वृद्धि सात्विक होती है, पुत्रोत्सव होता है तथा इस उपलक्ष में ससुराल से प्रचुर मात्र में दहेज़ मिलता है अथवा किसी अन्य व्यक्ति से उसे धन-प्राप्ति होती है तथा सुकोमल एवं सुन्दर स्त्रियों का संग ह्रदय में प्रसन्नता भए देता है जातक को वहां, वस्त्रालंकार, राज्य और समाज में प्रतिष्ठा, उच्च पद की प्राप्ति और भाग्य में वृद्धि होती है | यदि चन्द्रमा क्षीण तथा शुक्र पाप प्रभावी और अशुभ स्थानगत हो तो इससे विपरीत फल मिलते हैं | विषय-वासना की अधिकता, लांछन, बदनामी, देह दुःख, रोग, पीड़ा, वाद-विवाद में पराजय, स्त्री सुख का नाश, मधुमेय, सुजाक आदि रोग और मन को संताप मिलता है | 
  • सूर्य-  बलवान और शुभ सूर्य की अन्तर्दशा जब चन्द्रमा की महादशा में चलती है तो राज्य कर्मचारियों को पदवृद्धि, वेतनवृद्धि अथवा अन्य प्रकार से लाभ मिलता है | इससमय जातक का शत्रु पक्ष निर्बल, वाद-विवाद में जय, उत्तम स्वास्थ्य, राजा के समान वैभव, ऐश्वर्य तथा स्वर्गोपम सुखों की प्राप्ति, स्त्री व पुत्र-सुख में वृद्धि तथा परिजनों से लाभ मिलता है | यदि चन्द्रमा क्षीणावस्था का और सूर्य नीच, पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थानगत हो तो इस दशा में किसी विधवा स्त्री के द्वारा अपमान, दूसरों की उन्नति से इर्ष्या-द्वेष, पिता की मृत्यु अथवा संक्रामक रोगी होने की सम्भावना, पित्तज्वर, आमातिसार, सर्दी-जुकाम आदि रोगों से देह पीड़ा, मन में व्यर्थ की विकलता, चोर व अग्नि से सम्पत्ति की हानि आदि फल मिलते हैं | अपनी कुंडली की विवेचना विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित सुनील त्रिपाठी जी से कराने के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते है |
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